नैमिषारण्य तीर्थ अंतर्गत कई प्राचीन पौराणिक धर्मस्थल/देवस्थल है जिनमे मुख्यतः चक्रतीर्थ,माँ ललिता देवी मंदिर , भूतेश्वर नाथ मंदिर ,व्यास गद्दी,सूत गद्दी, मनु-सतरूपा तपस्थली , हनुमान गढ़ी, काशी कुंड तीर्थ , देवपुरी ,काशी विश्वनाथ मंदिर , रुद्रावर्त तीर्थ , देवदेवेश्वर , संत आपानारायण स्वामी समाधि स्थल , , चार धाम मंदिर, बालाजी मंदिर,त्रिशक्ति धाम, हत्या हरण तीर्थ, कालिका देवी,काली पीठ, प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। नैमिषारण्यसे कुछ दूरी पर मिश्रिख है- दधीचि कुंड। वृत्तासुर राक्षस के वध के लिए वज्रायुध के निर्माण हेतु फाल्गुनी पूर्णिमा को जब इन्द्रादि देवताओं ने महर्षि दधीचि से उनकी अस्थियों निवेदन किया तो महर्षि दधीचि ने कहा मैं समस्त तीर्थों में स्नान कर देवताओं के दर्शन करना चाहता हूं तो इन्द्र ने विश्व के समस्त तीर्थों और समस्त देवताओं का आव्हान किया तो समस्त तीर्थों और पवित्र नदियों ने एक सरोवर में मिश्रण हुए महर्षि दधीचि ने स्नान किया तब से इस कुण्ड का नाम ‘दधीचि कुण्ड’या ‘मिश्रित तीर्थ’ के नाम से जाना जाता है और समस्त देवताओं ने 84 कोस के नैमिषारण्य में अपना स्थान ग्रहण किया दधीचि जी ने सभी देवताओं का दर्शन किया परिक्रमा करने के बाद अपनी अस्थियों को दान में दे दिया तब से समस्त तीर्थ ‘35000000’साढे तीन करोड़ तीर्थ’ एवं समस्त देवता ‘(33) तेंतीस कोटि देवता नैमिषारण्य में वास करते हैं और आज भी भक्त समस्त तीर्थों और देवताओं का दर्शन 84कोश परिक्रमा करने के लिए देश विदेश से आते हैं ।
नैमिषारण्य तीर्थ अंतर्गत कई प्राचीन पौराणिक धर्मस्थल/देवस्थल है जिनमे मुख्यतः चक्रतीर्थ,माँ ललिता देवी मंदिर , भूतेश्वर नाथ मंदिर ,व्यास गद्दी,सूत गद्दी, मनु-सतरूपा तपस्थली , हनुमान गढ़ी, काशी कुंड तीर्थ , देवपुरी ,काशी विश्वनाथ मंदिर , रुद्रावर्त तीर्थ , देवदेवेश्वर , संत आपानारायण स्वामी समाधि स्थल , , चार धाम मंदिर, बालाजी मंदिर,त्रिशक्ति धाम, हत्या हरण तीर्थ, कालिका देवी,काली पीठ, प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। नैमिषारण्यसे कुछ दूरी पर मिश्रिख है- दधीचि कुंड। वृत्तासुर राक्षस के वध के लिए वज्रायुध के निर्माण हेतु फाल्गुनी पूर्णिमा को जब इन्द्रादि देवताओं ने महर्षि दधीचि से उनकी अस्थियों निवेदन किया तो महर्षि दधीचि ने कहा मैं समस्त तीर्थों में स्नान कर देवताओं के दर्शन करना चाहता हूं तो इन्द्र ने विश्व के समस्त तीर्थों और समस्त देवताओं का आव्हान किया तो समस्त तीर्थों और पवित्र नदियों ने एक सरोवर में मिश्रण हुए महर्षि दधीचि ने स्नान किया तब से इस कुण्ड का नाम ‘दधीचि कुण्ड’या ‘मिश्रित तीर्थ’ के नाम से जाना जाता है और समस्त देवताओं ने 84 कोस के नैमिषारण्य में अपना स्थान ग्रहण किया दधीचि जी ने सभी देवताओं का दर्शन किया परिक्रमा करने के बाद अपनी अस्थियों को दान में दे दिया तब से समस्त तीर्थ ‘35000000’साढे तीन करोड़ तीर्थ’ एवं समस्त देवता ‘(33) तेंतीस कोटि देवता नैमिषारण्य में वास करते हैं और आज भी भक्त समस्त तीर्थों और देवताओं का दर्शन 84कोश परिक्रमा करने के लिए देश विदेश से आते हैं ।